प्रोफेसर सुबोध झा रचित कृष्ण – यशोदा संवाद


प्रोफेसर सुबोध झा रचित कृष्ण – यशोदा संवाद

कृष्ण के प्रति बढ़ता मोह व प्रेम के वशीभूत एक अलौकिक सुख प्राप्त कर मैया यशोदा सुध–बुध खो देती हैं। दुसरी ओर कृष्ण भी मातृत्व प्रेम में भाव विभोर हो जाते हैं और उन्हें भी यह ध्यान नहीं रहता कि उनका अवतरण दुष्टदलन हेतु हुआ है।

परंतु माता यशोदा जब होश में आतीं हैं तो वे कृष्ण का परित्याग करने का मन बना लेती हैं। इसलिए अब वे कठोर होने का प्रयास करतीं हैं और कृष्ण को मथुरा जाने के लिए प्रेरित करतीं हैं। इसी संदर्भ में मेरी यह रचना जिसे सवैया छंद में गिनती के 23 वर्णों पर आधारित लिखा गया है। शीर्षक है:-

कृष्ण-यशोदा संवाद 


यशोदा 

कहे माता यशोदा,कृष्ण लला को, 

मोह माया अब, मैं ना बढ़ाऊं-2


देवकीनंदन, तुम कहलाओ, मैं सिर्फ पालक, नाम कहाऊं;


बाबा नंद दुआरे, तुम हो पधारे, भाग्य मेरे हैं, मैं क्या सुनाऊं-2


पल-पल कटते, निश दिन मेरे, निज व्यथा मैं, कैसे बताऊं- 2 ।


मैं कैसे बताऊं, अब तेरी कहानी, कैसे, नंद के, द्वार तू आए;


मैं कैसे बताऊं, अपनी जुबानी, कैसे, यशोदा की, गोद भराए- 2


जन्म लियो, तेने, देवकी कोख से, कंस का, ताप था, उन्हें सताए;


त्याग की, देवी है,देवकी माता,भेज दियो, तेने, मेरे घर आए -2 ।

 

अब जल्दी, बड़ा हो, जा तू कन्हैया, मथुरा की, जनता है पुकारे 2 


पैदा हुए तुम, जिस मथुरा में,जाके उसे संकट से उबारे 2।


आश तिरा, देख रहे हैं बाबा, जाकर उन्हें, तू कारा से छुड़ाले,


नंद यशोदा, तेरा सेवक है,निज माता, बाबा को, जाके बचा ले 2। 


राज की बात, मैं आज बताऊं, हूं मैं तेरी पालक, मैं नहीं मैया;


देवकी दीदी है, तेरी माता, और बाबा वासुदेव, तेरा खेवैया-2,


सातवीं संतान, मार दिए जब,एक अत्याचारी, कंस था भैया,


आठवां पुत्र, जन्म लियो तूने,अब तू ही उबारो, जाके कन्हैया-2।


कृष्ण 

जार बेजार, रोवन लगे, आंचल पकड़े मां का, कृष्ण कन्हैया- 2, 


आंखें खुली हैं, तेरी ही गोद में,नंद है बाबा और तू मोरी मैया- 2; 


मैं क्या जानूं, कौन है देवकी, है वो कौन, वसुदेव, मेरा खेवैया -2?

 

बचपन बिताया, तेरी ही गोद में,जहां मिले, मोहे, दाऊ भैया- 2।


मटकी तोड़ा, माखन चुराया, इतनी सी गलती, ये सजा पाया- 2;

 

अब ना, करूं मैं, गलती कभी भी, रो रो के, लला ने, मां को सुनाया- 2।


नैनन अश्रुपूरित, यशोदा ने, कृष्ण लला, उर कंठ लगाया- 2, 


हर्षित, "सुबोध", नाचत, गावत, रचना रची माया, को सुनाया- 2।


सुबोध झा

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