साहिबगंज में बाढ़ की विभीषिका पर कवि सुबोध झा की ग़ज़ल: बाढ़ की जो दुर्दशा पर सरकारें बेखबर कैसे..?
बाढ़ की जो दुर्दशा पर सरकारें बेखबर कैसे?
परेशां जनता की आहें उनपर बेअसर कैसे?
उसने ही भेजा तुम्हें,फिर भी बेअदब हो तुम;
दर बदर भटक रहे वो कि तुमसे बेनजर कैसे?
इधर उधर जिधर पानी पानी दिख रहा मगर,
नजर नहीं तिरा इधर नीयत तेरी बदतर कैसे?
तड़प रहे हैं भूख से हर शख्स हैं यहां मगर,
सोयी जो है सरकार को कहे हमसफ़र कैसे?
मकान ढ़ह गया यहां सामान बह गया वहां,
हर शख्स परेशां कि अब हो गुज़र बसर कैसे?
वो जो एक मकान,बनाया था शौक से सुबोध,
ढ़ह गया,बह रहा है वो सपने कुचलकर कैसे?
✍️प्रो. सुबोध झा "आशु"
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