अदम्य साहस की अमर विरासत : सर दोराबजी टाटा की 166वीं जयंती पर विशेष
साहिबगंज। आज राष्ट्र महान उद्योगपति और दूरदर्शी समाजसेवी सर दोराबजी टाटा की 166वीं जयंती मना रहा है। सर दोराबजी टाटा केवल एक सफल उद्योगपति ही नहीं थे, बल्कि सच्चे राष्ट्रनिर्माता और सामाजिक उत्थान के प्रति समर्पित व्यक्तित्व थे।
उन्होंने अपने पिता जमशेदजी टाटा के सपनों को साकार करने के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। देश के औद्योगिक विकास में उनका योगदान ऐतिहासिक माना जाता है। टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (टिस्को) की स्थापना में उनकी निर्णायक भूमिका रही। कंपनी के कठिन दौर में उन्होंने अपनी निजी संपत्ति तक दांव पर लगाकर उसे संकट से उबारा।
ऊर्जा के क्षेत्र में भी उन्होंने दूरगामी कार्य किए। पश्चिमी घाट में जलविद्युत परियोजनाओं और टाटा पावर की स्थापना कर उन्होंने भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए।
शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में योगदान
सर दोराबजी टाटा का योगदान शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में भी अविस्मरणीय है। उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की स्थापना में सक्रिय सहयोग दिया। इसके साथ ही उन्होंने सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट की नींव रखी, जिसके अंतर्गत समाज को अनेक महत्वपूर्ण संस्थान मिले। इनमें प्रमुख रूप से टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) और टाटा मेमोरियल सेंटर शामिल हैं।
खेलों में अग्रणी भूमिका
देश में खेलों को बढ़ावा देने में भी उनकी अहम भूमिका रही। उनके प्रयासों से भारत ने पहली बार 1920 और 1924 ओलंपिक खेलों में भागीदारी की। वे अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) के सदस्य भी बने, जो उस समय भारत के लिए बड़ी उपलब्धि थी।
राष्ट्र को नमन
आज उनकी 166वीं जयंती पर SBG न्यूज़ उन्हें नमन करता है। सर दोराबजी टाटा ने अपने अदम्य साहस, दूरदर्शिता और करुणा से भारत के औद्योगिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास की मजबूत नींव रखी। उनका योगदान सदैव आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।
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