शिक्षण पद्धति और तकनीक का सामंजस्य
Education : यह कभी किसी ने सोचा न था की सन् 2020 की होली की छुट्टी इतनी लंबी होगी। स्कूल, कॉलेज, सारे बंद होने के कारण बच्चों की पढ़ाई भी छूट गई है. यू तो ऑनलाइन कक्षाएं चलाई जा रही, लेकिन बच्चों की उपस्थिति बहुत कम है.
यह अनुपस्थिति शिक्षकों के साथ -साथ स्कूल मैनेजमेंट के लिए भी चिंता का विषय बन है. यह कोई नहीं जानता की पूर्व की भाती कक्षाओं को चलाने में और कितना समय लगेगा. क्या तब तक बच्चों को यू ही छोड़ देना होगा?
इसका उत्तर हमे तलाशना होगा.
क्या हम कुछ तकनीकी सुधारो के साथ पढ़ाई रोचक बना सकते है। यूं तो कई उदाहरण हमें शिक्षकों के देखने को मिले, जिन्होंने इस आपदा के दौरान भी निष्ठा पूर्वक शिक्षण प्रणाली को ऑनलाइन के माध्यम से चलाया.
लेकिन कई ऐसे भी उदाहरण थे, जहां बच्चों के द्वारा शिक्षकको के साथ अभद्रता हुई, तो ऐसा क्या हो की शिक्षकों के मनोबल को बनाएं रखते हुए हम बच्चों को और भी उत्साहित करते, इस ऑनलाइन प्रणाली को बढ़ाएं.
2020 हमें यह एहसास दिलाते विदा कर गया की हमें बाकी चीजों की तरह तकनीक में भी इन्वेस्टमेंट करना होगा. दुमका के बनकटी गांव के प्रधानाचार्य, तो सबको याद होंगे.
जून 2020 के महीने में जब करोना पिक पर था और ऑनलाइन शिक्षा के बारे में कई स्कूल सोच रहे थे, उन्होंने बच्चों को लाउडस्पीकर से पढ़ाना शुरु किया. इस कार्य की काफी सराहना हुई और यह हमें शिक्षा भी मिला की "Broad Casting" माध्यम का इस्तेमाल बढ़ाना होगा.
ब्रॉडकास्ट तकनीक का इस्तेमाल IGNOU जैसे संस्थान भी सुदूरवर्ती इलाकों में शिक्षा का प्रचार प्रसार के लिए इस्तेमाल कर रही है. जिस प्रकार इग्नू ने अपने कुछ कोर्स की रिकॉर्डिंग ऑडियो अपने वेबसाइट पर अपलोड किया है, ठीक उसी प्रकार स्कूलों को भी विषय अनुसार ऑडियो एवं वीडियो रिकॉर्ड करके अपलोड करना चाहिए.
इससे वाह कंटेंट सुरक्षित भी होगा एवं बच्चे अपने अनुसार कहीं से भी सुन सकेंगे.
व्हाट्सएप का इस्तेमाल करते हुए हमने बच्चों तक अपने पठन - पाठन की व्यवस्था को संचालित रखा, लेकिन जब परीक्षा की घड़ी आई तो शायद हम व पारदर्शिता नहीं बना पाए.
इसके लिए स्कूली स्तर पर एप्स बनाएं जिसके माध्यम से बच्चों को लॉगइन आईडी पासवर्ड प्रदान करें, जिसका इस्तेमाल कर, हम बच्चों को परीक्षा करवाएं। Apps Installation के दौरान यदि सिक्योरिटी राइट दे दिया जाए तो परीक्षा के दौरान फोन का कैमरा खुद ब खुद ऑन हो जाएगा एवं सामने शिक्षक उन बच्चों को परीक्षा देते हुए निगरानी भी कर पाएंगे.
जहां परीक्षा में हमें बच्चों की लिखित दक्षता भी जांचनी होती, इसलिए ऐप के माध्यम से हम लिखित कॉपी की छवि क्लाउड में स्टोर कर सकते हैं. जरूरत के अनुसार शिक्षक डाउनलोड कर कॉपी जांच सकते हैं तथा उसी ऐप के माध्यम से रिजल्ट भी जारी की जा सकती है.
राज्य स्तर पर अब यह सुनिश्चित करना होगा की एफएम रेडियो या टीवी चैनल चलाया जाए, जहां से बच्चे, कम से कम गणित और विज्ञान की पढ़ाई कर सकें. यदि शिक्षकों को रुचि अनुसार बुलाकर कक्षा आयोजित हो तो हम राज्य के सुदूर इलाके से भी डॉक्टर इंजीनियर बिना किसी अतिरिक्त कोचिंग के बना सकते हैं.
शायद शिक्षकों को मुश्किल बढ़े , कक्षाओं को TV और FM पर कराने में, लेकिन यही जरूरी है कि अन्य विभागों की तरह राज एवं स्कूल स्तर पर डिपार्टमेंट ऑफ डिजिटल एजुकेशन की स्थापना हो, जिसका कार्य शिक्षकों को तकनीक के लिए ट्रेन करना होगा , 3D और एनिमेशन का इस्तेमाल करके आवश्यक कंटेंट बनाना एवं प्रसारित करना उस डिपार्टमेंट कि ज़िमेदारी हो.
अब समय की मांग एवं जरूरत है कि अपने बच्चों को एजुकेशन के साथ लर्निंग भी दिलाना पड़ेगा, यह तभी संभव होगा जब बच्चे अपने दादा दादी एवं बुजुर्गों के साथ समय ज्यादा व्यतीत करें.
स्कूली स्तर पर शिक्षण प्रणाली में इसे शामिल करने के लिए विचार करना होगा, समय कोई भी हो शिक्षा हमेशा से महत्वपूर्ण रहेगा, तकनीक के माध्यम से हमें इसे और बेहतर बनाकर सुदूर अवस्थित बच्चों तक पहुंचाना होगा.
लेकिन इस दौरान हमें उन्हें या भी बताना होगा कि यदि तकनीक का गलत इस्तेमाल हो तो वह कई सारे फ्रॉड के भी पात्र हो सकते हैं.
Cyber Security एवं Cyber Expert के माध्यम से वेबीनार करा कर हम बच्चों को होने वाले नुकसान या उनके द्वारा की गई ऑनलाइन शरारत के परिणाम का विश्लेषण करके जागरूक कर सकते हैं. इससे हमें काफी हद तक बच्चों को ऑनलाइन कक्षा लेने में मदद मिलेगी.
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