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बचपन : आंचल कुमारी गुप्ता की स्वरचित कविता


उन सुनहरे लम्हों की नजाकत को देखो,

बचपन की यादों की

ताकत को देखो।
बचपन : आंचल कुमारी गुप्ता की स्वरचित कविता


आँसुओं के सैलाब बह जाएंगे,

बचपन के लिए जवानी की बगावत को देखो।

याद आए क्या वो गुजरे हुए दिन?

पापा की उंगली पकड़कर चलने वाले लम्हों को गिन,

मां की गोद में सर रख कर सोए थे कभी,

जानती हूं अधूरी होती है जिंदगी मां-बाप के बिन।

याद आई है स्कूल में बिताई हुई प्यारी यादें,

दोस्तों के संग कितनी हसीन होती थी मुलाकातें।

बहुत याद आती है यार तेरे संग बिताए पल,

ना जाने कहां खो गया वो बचपन वाला कल।

क्या याद है तुम्हे वो टीचर्स की मार ?

क्या याद है पापा की डाट-फटकार ?

या फिर मम्मी का लाड-दुलार?

काश कोई टोकता आज हमें,

हमारी गलतियों पर हर बार।


ख्वाबों के सहारे बस गुजर रही है जिंदगी,

अब तो बस है मेरी एक ही तमन्ना,

बचपन के खुशनुमा यादों से भर जाए,

जीवन  का हर पन्ना।

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