नए कलेवर की "गीता" अब 15 भाषाओं में होगी प्रकाशित : गीता प्रेस कर रहा तैयारी


गोरखपुर :- भाव, संवेदना, सत्य व कथ्य की यदि गोरखपुर एक किताब हो, तो गीता प्रेस उसका एक खूबसूरत अध्याय है

नए कलेवर की "गीता" अब 15 भाषाओं में होगी प्रकाशित : गीता प्रेस कर रहा तैयारी



गीता प्रेस पूरी दुनिया में एक जाना - पहचाना नाम है। सस्ते दर पर लोगों को धार्मिक पुस्तकें उपलब्ध कराना और इन पुस्तकों के माध्यम से संस्कार निर्मित करना गीता प्रेस का मुख्य कार्य है। वह सिर्फ अच्छे संस्कारों का प्रचार-प्रसार ही नहीं करता, बल्कि वहां काम करने वाले मजदूर से लेकर प्रबंधक तक खुद भी उसे जी रहे हैं।

गोरखपुर की विश्व प्रसिद्ध गीता प्रेस की गीता को जन जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से स्थापित की गई थी।गीता प्रेस अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर चुकी है। गीता प्रेस कई भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित करता है।विभिन्न आकार और प्रकार की 15 भाषाओं में 16.54 करोड़ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित कर चुका है। 

गीता आर्ट पेपर पर 4 रंगों में सचित्र गीता नए कलेवर में प्रकाशित पिछले वर्ष से कर चुका है, जो हिंदी, गुजराती, मराठी और अंग्रेजी भाषाओं में प्रकाशित हो रही है। आर्ट पेपर पर अंग्रेजी पाठकों तक 4 भाषाओं में गीता पहुंच चुकी है। इसे भी अब 15 भाषाओं में प्रकाशित किया जाएगा। जिसमें बंगला और तेलुगू भाषाओं का संस्करण तैयार हो गया है। इसे अगले साल जनवरी में पाठकों को उपलब्ध करा दिया जाएगा। 

 गीता प्रेस गोरखपुर की पहचान है। 100 वर्ष पहले उत्तर प्रदेश के काफी पिछड़े जिले में से एक गोरखपुर ने इसके प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी उठाई।कोलकाता के सेठ जयदयाल गोयनका इसके वाहक बने। 1923 में उन्होंने गीता के प्रकाशन के लिए प्रेस की स्थापना की। जिसे आज गीता प्रेस के नाम से जाना जाता है।

क्या है गीता प्रेस की कहानी

मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष एकादशी को गीता कुरुक्षेत्र में भगवान श्री कृष्ण के मुख से उत्पन्न हुई थी। गोरखपुर में गीता प्रेस की स्थापना और कहानी बड़ी रोचक व प्रेरित करने वाली है। लगभग 1921 में कोलकाता में जयदयाल गोयंदका ने गोविंद भवन ट्रस्ट की स्थापना की थी। इसी ट्रस्ट के तहत वहीं से वह गीता का प्रकाशन कराते थे। 

शुद्धतम गीता के लिए प्रेस को कई बार संशोधन करना पड़ता था। प्रेस मालिक ने एक दिन कहा कि इतना शुद्ध गीता प्रकाशित करवानी है तो अपना प्रेस लगा लीजिए। गोयंदका ने इसे भगवान का आदेश मानकर इस कार्य के लिए गोरखपुर को चुना। 1923 में उर्दू बाजार में दस रुपये महीने के किराए पर एक कमरा लिया गया और वहीं से शुरू हो गया गीता का प्रकाशन। धीरे-धीरे गीताप्रेस का निर्माण हुआ और इसकी वजह से पूरे विश्व में गोरखपुर को एक अलग पहचान मिली। 29 अप्रैल 1955 को भारत के तत्कालीन व प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने गीता प्रेस भवन के मुख्य द्वार व लीला चित्र मंदिर का उद्घाटन किया था।

4 जून 2021 को तत्कालीन राष्ट्रपति कोविंद ने किया था उद्घाटन

आज गीता प्रेस से प्रकाशित पुस्तकें देश ही नहीं पूरे संसार में पहुंच रही है। अब गीता प्रेस में आर्ट पेपर पर 15 भाषाओं में नए कलेवर की गीता प्रकाशित की जाएगी। गीता प्रेस अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है और इस शताब्दी वर्ष समारोह का उद्घाटन 4 जून 2021 को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने किया था।

 गोरखपुर में गीता का प्रकाशन जिस मशीन से शुरू हुआ था, वह मशीन आज भी लोगों के दर्शनार्थ के लिए लीला चित्र मंदिर में रखी गई है। लोग लीला चित्र मंदिर में भगवान राम और कृष्ण की लीला चित्रों का दर्शन करने के साथ-साथ इस मशीन को भी देखते हैं। बाहर से आने वाले लोगों को जब यह पता चलता है कि इसी मशीन से गोरखपुर में पहली गीता प्रकाशित हुई थी तो लोग उस मशीन को प्रणाम करते हैं और उसके प्रति आदर भाव प्रकट करते हैं।

गीता प्रेस का अर्थशास्त्र

गीता प्रेस का सबसे खूबसूरत पक्ष उसका अर्थशास्त्र है। आम आदमी तक धार्मिक पुस्तकें सस्ते दर पर पहुंचाने का जब गीता प्रेस ने बीड़ा उठाया तो उसके पहले उसका अर्थशास्त्र तैयार किया। उद्देश्य था गीता प्रेस बंद न होने पाए और सफलता भी मिलती रहे। 

आज उसी अर्थशास्त्र के बल पर अच्छे कागज व आकर्षक छपाई भी गीता प्रेस की पहचान बनी हुई है। गीता प्रेस आम जन को लागत मूल्य से 30 से 60 प्रतिशत तक कम रेट पर पुस्तकें उपलब्ध कराता है। इतना ही नहीं गीता प्रेस निरंतर तरक्की भी करने में पीछे नहीं है। गीता प्रेस एक पैसा भी किसी व्यक्ति या संस्था से दान नहीं लेता है। कम कीमत में पुस्तकें उपलब्ध कराने के बावजूद गीता प्रेस कभी घाटे से प्रभावित नहीं हुआ। आज कोई भी प्रिटिंग की अत्याधुनिक टेक्नालाजी या मशीन आती है तो वह गीता प्रेस में सबसे पहले आती है। गीता प्रेस का यह अर्थशास्त्र भारत व दुनिया के अर्थशास्त्र को नई दिशा दे सकता है।


नो प्राफिट नो लास पर कार्य करता है गीता प्रेस


गीता प्रेस, गोविंद भवन कार्यालय ट्रस्ट, कोलकाता की एक इकाई है। यह ट्रस्ट 'नो प्राफिट नो लास' पर कार्य करता है। गीता प्रेस घाटे से प्रभावित हुए बिना घाटे का सौदा करता रहे, इसके लिए गोविंद भवन कायरलय ट्रस्ट ने गीता प्रेस के अलावा आय के अन्य संसाधनों का विकास किया, जिसकी आय से गीता प्रेस का घाटा पूरा किया जाता है और पूरी दुनिया में धार्मिक पुस्तकें सस्ते दर पर उपलब्ध कराई जाती हैं। 


गीता प्रेस के प्रबंधक डॉ. लालमणि तिवारी ने बताया कि गीता प्रेस से 15 भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित होती हैं। आर्ट पेपर पर प्रकाशित होने वाली गीता को भी सभी 15 भाषाओं में प्रकाशित किया जाएगा। फिलहाल अभी आर्ट पेपर पर चार भाषाओं में गीता का प्रकाशन हो चुका है। आगामी जनवरी में दो अन्य भाषाओं में भी संस्करण निकलने जा रहे हैं, जिसकी तैयारी पूरी हो चुकी है।

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