"सिनेमा की बातें" धर्मेंद्र, अशोक कुमार, निम्मी अभिनीत फिल्म 'आकाशदीप' उस दौर की फिल्म है, जब देश में औद्योगिकीकरण तेजी से हो रहा था


नोरंजन
धर्मेन्द्र, नंदा, अशोक कुमार, निम्मी अभिनीत फिल्म 'आकाशदीप'

"सिनेमा की बातें" धर्मेंद्र, अशोक कुमार, निम्मी अभिनीत फिल्म 'आकाशदीप' उस दौर की फिल्म है, जब देश में औद्योगिकीकरण तेजी से हो रहा था


ये उस दौर की फिल्म है, जब देश में औद्योगिकीकरण तेजी से हो रहा था। पूंजीवाद के बढ़ते कदम और मजदूरों के शोषण का बाजार गर्म था। बड़े शहरों में ऊँची चिमनियां और बजते सायरन वाली मिलें दिखाई देने लगी थी।

इस फिल्म में मिल मालिक और मजदूरों में सामंजस्य बैठाने की कोशिश दिखाई देती है। इस फिल्म में एक गरीब लड़का अशोक कुमार अपने बूते मिल मालिक बनता है, बाद में सभी मजदूरों को उसका शेयर होल्डर बनाकर उसे कॉपरेटिव सोसायटी बना देता है। जो नेहरू के समाजवादी मॉडल की सोच थी।

कालांतर में इस देश में यही सहकारी समितियां ग्रामीण लठैतों का अड्डा बन गई थी, जो आज तक कायम है और किसानों और मजदूरों का शोषण सबसे ज्यादा इन्ही के जरिये होता है। धर्मेन्द्र इस फिल्म में यूनियन लीडर बने थे, जो मिल मालिक की बहन नंदा से प्रेम करते हैं। धर्मेन्द्र की एक फिल्म बाद में और आई थी 'नया जमाना', इसमें भी वे यूनियन लीडर बने थे और मिल मालिक की लड़की से प्रेम करते हैं। फिल्म ''रेशम  की डोरी'' में भी वे मिल मजदूर की भूमिका में होते हैं। 

50 से 70 के दशकों में बनी अधिकाँश फिल्मों में साम्प्रदायिक सौहार्द, मालिक - मजदुर के सम्बन्ध और देश को प्रगति पथ पर ले जाने के गीतों से सजी फ़िल्में बनी थी।

साथी हाथ बढ़ाना साथी रे,

छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी, नए दौर में लिखेंगे मिल कर नई कहानी, हम हिंदुस्तानी, इंसान का इंसान से हो भाईचारा यही पैगाम हमारा, जैसे कई प्रगतिशील गीत बजे और 'हम हिंदुस्तानी', 'पैगाम' जैसी फिल्में आई।
मिल मजदूर पर शायद अंतिम फिल्म राज बब्बर, दिलीप कुमार की 'मजदूर' थी और उसके बाद नई आर्थिक नीति और खुले बाजार की नीति ने इन मिलों पर ताला जड़ दिया।

गुजरात में भी श्वेत क्रांति पर बनी फिल्म ''मंथन''  भी उसी दौर की फिल्म थी। मनोज कुमार ने भी अपने फ़िल्मी कैनवास पर हरित क्रांति को देश भक्ति के साथ खूब अच्छी तरह से पिरो कर पेश किया। मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती, रंग बसंती, अंग बसंती छा गया, मस्ताना मौसम आ गया। उस समय की सभी फिल्मों के गीत बड़े दिलकश होते थे।

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