क्रांतिकारी शहीद चन्द्रशेखर आजाद की पुण्यतिथि पर उन्हें सहृदय नमन वंदन करते हुए श्रद्धांजली


क्रांतिकारी शहीद चन्द्रशेखर आजाद की पुण्यतिथि पर उन्हें सहृदय नमन वंदन करते हुए श्रद्धांजली स्वरूप प्रो. सुबोध झा की काव्यात्मक अभिव्यक्ति

क्रांतिकारी शहीद चन्द्रशेखर आजाद की पुण्यतिथि पर उन्हें सहृदय नमन वंदन करते हुए श्रद्धांजली

सबपर भारी, एक क्रांतिकारी;

चन्द्रशेखर सीताराम तिवारी।

सदा रहे अपना देश आभारी;

जियो तिवारी, जियो तिवारी।


बचपन बीता, थी बड़ी गरीबी;

पढ़ाई भी थी रह गई अधूरी;

चला वतन आजाद करने को;

नहीं दिखाई अपनी मजबूरी।


माँ भारती बेड़ियों में सिसक रही;

युवा दिल में क्रांति धधक  रही।

नाम *आजाद* महान  क्रांतिकारी;

जियो तिवारी, जियो  तिवारी।


मिलने गया था वह आनंद भवन;

रूका अल्फ्रेड पार्क देख उपवन।

रहस्य रहा, जिसने की  मुखबिरी;

शहीद हुए पंड़ित आजाद तिवारी।


कहा गर पकड़ा जाऊँ जिन्दा;

खुद को यूँ क्यूँ कर दूँ शर्मिंदा?

क्रांतिवीर था वह बड़ा भारी;

जियो तिवारी, जियो तिवारी।


जय हिंद का फिर उद्घोष लगाया;

मिट्टी का था बस तिलक बनाया।

फिर खुद को  सिर पे गोली मारी;

जियो तिवारी, जियो   तिवारी।


क्रान्तिकारी पं. चंद्रशेखर आजाद;

सपना था माँ भारती रहे आजाद;

हाथ न आऊँ गोरे की रहूँ आजाद;

खुद को गोली मारी हुए आजाद।

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आजाद को 5 गोलियां लगीं। इससे पहले कि उनकी कोल्ट पिस्टल पर पकड़ ढीली हो जाए और वे गोरों के हत्थे चढ़ जाएं, पिस्टल में बची आखिरी गोली कनपटी में उतार दी और शहीद हो गए। आज़ाद अक्सर गुनगुनाते थे 'दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे, आजाद हैं, आजाद ही मरेंगे।'

अंतत: यह सत्य सिद्ध भी हुआ, लेकिन इस बात का रहस्य ही रह गया कि वे अल्फ्रेड पार्क में जिस दिन जिस समय शहीद हुए थे, उसके ठीक पहले आजाद आनंद भवन, जो पार्क से महज एक किलोमीटर की दूरी पर था, पंड़ित जवाहरलाल नेहरू से मिलकर आ रहे थे, बीच में किसने मुखबिरी कर दी, ये अनुत्तरित है अब तक?

प्रोफेसर सुबोध झा

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