जालियांवाला बाग और असहयोग आंदोलन: भाग-5



जालियांवाला बाग और असहयोग आंदोलन: भाग-5

अब तक आपने देखा कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना, जो मूलत: अंग्रेजों द्वारा अपनी सत्ता को बचाने के लिए की गई थी, की वास्तविकता क्या थी? परंतु गांधीजी ने उनके मनसूबों पर पानी फेरते हुए अहिंसक आंदोलन चलाया।

फिर भी अंग्रेजों की क्रुरता कम न हुई। इधर क्रांतिकारियों की बलिदानी प्रवृति भी अपने चरम पर थी और अंग्रेजियत की हवा निकालने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे थे। यह बात अलग है कि गांधीवादियों को क्रांतिकारी फूटी आँख न भा रहे थे। अब आगे-


जालियांवाला नरसंहार व असहयोग आन्दोलन


राजकुमार शुक्ल ने गांधी को निमंत्रण दिया;

19 अप्रैल 1917 से सत्याग्रह चम्पारण किया;


जोश बढ़ी,फिर गुजरात,खेड़ा की भूमि पर;

फैसला 1918 में किसान आन्दोलन लिया।


अंग्रेजों की दमनकारी नीति से जन-जन थे टूट गए;

सब जालियांवाला बाग में विरोध करने को जुट गए।


अब इतिहास का वो काला दिन आया;

19अप्रैल1919 को मनहूसियत लाया। 


अचानक आ पहुंचा एक क्रूर हत्यारा;

जनरल डायर नाम का दुश्मन हमारा।


फिर निहत्थों पर गोलियों से वार किया;

इतिहास का सबसे बड़ा नरसंहार किया।


बस वही प्रतिशोध की भावना लेकर;

एक क्रांतिकारी उधम सिंह ब्रिटेन गया।


फिर वहां जनरल डायर को मारकर;

अपनी धधकती ज्वाला को शांत किया। 


1920-22 में महात्मा ने भारत भूमि पर;

असहयोग आन्दोलन का सूत्रपात किया;


एक नई ऊर्जा व नई स्फूर्ती के साथ;

अंग्रेजी सत्ता पर कड़ा वज्रपात किया। 


तत्काल चौरा चौरी की एक घटना हुई ;

क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश की हत्या कर दी।


इस घटना ने गाँधी को आहत किया;

भावावेश में असहयोग आन्दोलन वापस लिया।



सुबोध झा 

क्रमश:___

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