भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तथा महात्मा गांधी का प्रादूर्भाव: भाग - 4


अबतक आपने पढ़ा कि झारखंड, पंजाब, पुणे आदि जगहों पर क्रांति के हिंसक संघर्ष में क्रांतिवीरों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। संग्राम की दिशा और दशा ही बदल गई, जब से भारत में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रादुर्भाव हुआ। लेकिन यहाँ विरोधाभास भी है कि अपने प्रारंभिक दिनों में कांग्रेस की स्थापना वास्तव में कहीं न कहीं सत्ता और संघर्ष के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए ही था।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तथा महात्मा गांधी का प्रादूर्भाव: भाग - 4

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक अंग्रेज अफसर ए.ओ.ह्यूम का कांग्रेस की स्थापना का उद्देश्य कतई नहीं था कि "कांग्रेस आएगी, अंग्रेजों के विरुद्ध आजादी की लड़ाई लड़ेगी, भारत को स्वतंत्र करवाएगी, देश पर राज करेगी, सुख भोग करेगी?"  बल्कि यकीनन उन्होंने कांग्रेस इसलिए बनाई कि जब तक सूरज-चांद रहेगा, भारत वर्ष में अंग्रेजों का राज रहेगा।

एक सुन्दर प्रमाण है कि 1857 की क्रांति के समय ए ओ ह्यूम इटावा के डी सी हुआ करते थे। उस समय उन्होंने 10 मई 1857 को कई क्रांतिकारियों का कत्ल किया था ।इतना ही नहीं 7 अक्तूबर 1858 को तो उन्होंने हद ही कर दी, जब 131 क्रांतिकारियों का कत्लेआम कर दिया।

कहते हैं न कि शिकारी आएगा, जाल बिछाएगा,लोग उसमें फँसना नहीं, कबूतर रटता रहा, फिर भी दाना देखकर कबूतर फँस ही गया। ठीक उसी प्रकार ए.ओ.ह्यूम रूपी शिकारी ने नरमपंथी रूपी भारतीयों को कांग्रेस रुपी जाल में फँसाया। 

यह बात अलग है कि महात्मा गाँधी के भारत आगमन के उपरांत भले ही कांग्रेस की दिशा और दशा में अचानक परिवर्तन देखने को अवश्य मिला। यही कारण था कि आजादी के उपरांत गाँधीजी ने कांग्रेस को भंग करने का प्रस्ताव दिया था। बात भी सत्य है कि ज्यों ज्यों भारतीय की पकड़ कांग्रेस पर मजबूत हुई आन्दोलन की धार तेज हुई, लेकिन अहिंसात्मक आन्दोलन द्वारा जिनके दिल में अंग्रेजों के प्रति नफरत पनप रहा था, वे कांग्रेस से अलग होते गए।


भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना तथा महात्मा गाँधी का आविर्भाव

1885 में अंग्रेज अफसर ए.ओ.ह्यूम ने;

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की;


प्रथम अधिवेशन दिसंबर 1885 मुम्बई में;

डब्ल्यू सी बनर्जी की अध्यक्षता में हुई।


2005 में वायसराय हुए लार्ड कर्जन;

किया मुस्लिम बहुल प्रांत का सृजन।


16 अक्टूबर 2005 में किया बंगाल विभाजन;

फिर शुरू हुआ बंगाल में बंग-भंग आन्दोलन।


लोकमान्य तिलक व अरविंद घोष ने;

देश में स्वदेशी आन्दोलन चलाया था;


स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है;

हम लेकर रहेंगे, का नारा लगाया था। 


1907 का वह समय भी आया;

जब कांग्रेस दो खेमों में बँट गया;


गरम दल और नरम दल दोनों; 

एक-दूसरे पर ही था डट गया।


गोखले,फिरोज मेहता, नौरोजी नरम दल थे;

ब्रिटिश शासन में ही स्वशासन का आह्वान किया;


पर सशस्त्र लाल, बाल,पाल गरम दल थे;

सम्पूर्ण भारत में पूर्ण स्वराज का एलान किया।


2009 में तुष्टिकरण से मोहित थी सरकार;

जब भारत में लाया कानून मार्ले-मिंटो सुधार।


अधिनियम बिल्कुल ही नहीं था सामुदायिक;

चुनाव प्रणाली बन चुकी थी साम्प्रदायिक।


तब कांग्रेस में एक नवयुग का प्रादुर्भाव हुआ;

जब 1915 में गाँधी का भारत में आविर्भाव हुआ।


अब कांग्रेसी लड़ाई नये सिरे से शुरुआत हुई;

फिर सत्ता से दमनकारी नीति की बरसात हुई।


गाँधी ने सत्य–अहिंसा अपनाकर;

अंग्रेजी सत्ता का प्रतिकार  किया;


फिर सबने ही एक साथ मिलकर;

अंग्रेजी कानून का बहिष्कार किया।


बटुकेश्वर,सुभाष,आजाद,भगत सिंह ने;

महात्मा गाँधी का बस सिर्फ मान किया;


पर अपनी क्रांति की हिंसक  ज्वाला से;

आजादी की लड़ाई का आह्वान किया।


18 मार्च 1919 में दुष्ट अंग्रेजों ने लाया; 

सर सिडनी का एक काला रॉलेट कानुन;


ट्रायल बिना ही सबको मुजरिम बनाया;

काल कोठरी में डाला सबको चुन चुन।


क्रमश:____

Related News

0 Response to "भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तथा महात्मा गांधी का प्रादूर्भाव: भाग - 4"

Post a Comment

साहिबगंज न्यूज़ की खबरें पढ़ने के लिए धन्यवाद, कृप्या निचे अनुभव साझा करें.

Iklan Atas Artikel

Iklan Tengah Artikel 2

Iklan Bawah Artikel