भाग-2, सिपाही विद्रोह: आजादी की पहली लड़ाई


 

अबतक आपने पढ़ा कि लार्ड क्लाइव ने प्लासी की जंग जीतकर भारत पर अंग्रेजी सत्ता का द्वार खोल दिया। प्लासी की एक जंग ने और उसी दरमियान हुए कुछ घंटों की बारिश ने हिन्दुस्तान का मुस्तकबिल तय कर दिया और हमें 200 सालों की गुलामी की ओर धकेल दिया।

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जंग के लिए हमारा नवाब तो तैयार था, लेकिन नवाबी रंग-ढंग में डूबे बंगाल के इस सूबेदार ने कई गलतियां की। दुर्भाग्य था भारत का, कि उस दिन बारिश को जंग के दौरान ही आना था। दोनों ओर से तोपें गरज रही थीं, बंदूकें चल रही थीं।

तभी बादल गरज उठे। तेज वर्षा शुरू हो गई। अंग्रेजों का मैनेजमेंट और हुनर आज नहीं, तब से ही मशूहर था। उन्होंने तुरंत तारपोलिन से अपने गोले-बारूद और तोपों को ढ़क दिया। भीगे गोले और बारूद, जंग में भला किस काम के? ब्रिटिश कमांडरों ने तुरंत सतर्कता दिखाई।

लेकिन बंगाल का नवाब सिराजुद्दौला ये होशियारी न दिखा सके। तोप के सारे बड़े-बड़े गोले भीग कर गोबर हो गए। बारिश थमी। युद्ध एक बार फिर शुरू हुआ। नवाब के सिपाहियों ने जब गोलों को तोप में डालकर चार्ज किया तो सारे फुस्स हो गए।

दूसरी ओर मीर जाफर की गद्दारी ने भारत को गुलामी की जंजीर पहनाने में कोई कोर कसर न छोड़ी। अंग्रेजों ने 22/23 अक्तूबर 1764 में बक्सर युद्ध जीतकर बंगाल पर पूर्णत: अधिकार कर लिया था। बताते चलें कि 1765 में लार्ड क्लाइव ने मुगल बादशाह शाह आलम,

अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा बंगाल के नवाब मीर कासिम को हराकर इलाहाबाद संधि के तहत कम्पनी के लिए बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी प्राप्त कर ली और फिर बंगाल की सत्ता पर पूर्णत: अधिकार प्राप्त करते हुए कलकत्ता को राजधानी बना दिया।

फिर शुरू होता है बंगाल की समृद्ध संस्कृति का सत्यानाश। इसके बाद छिटपुट लड़ाई लड़कर तथा अपने धूर्ततापूर्ण व्यवहार से अंग्रेजों ने लगभग सम्पूर्ण भारत पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया, जिसे काव्य की व्यापकता को देखकर काव्य का अंग नहीं बनाया गया।

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प्रत्यक्षदर्शी ने लिखा कि जब क्लाइव अपने मुट्ठीभर सैनिकों के साथ अपनी बुद्धिमत्ता व धुर्तता से प्लासी युद्ध जीतकर अपने विजय जुलूस के साथ जा रहे थे तो लाखों की संख्या में भारतीय जुलूस पर फूल बरसा रहे थे। यदि उसी समय उन लोगों ने मात्र एक–एक पत्थर बरसा दिया होता, तो मुट्ठीभर अंग्रेज उसी समय भाग खड़े होते और भारत गुलाम न होता।

कहने का अर्थ है कि उस समय सिर्फ सैनिक लड़े, आम लोगों ने विरोध नहीं किया। विरोध तो तब शुरू हुआ, जब देश लुटने लगा। किंतु तबतक तो अंग्रेज शक्तिशाली हो चुके थे। फिर भी अंग्रेजों का सम्पूर्ण देश में छिटपुट विरोध जारी रहा।


आजादी की पहली लड़ाई: सिपाही विद्रोह 

सन् 1857 में हुई एक सिपाही क्रांति; 

चर्बीयुक्त कारतूस ने ध्वस्त की संस्कृति।


तभी वीर मंगल पाण्डे ने आवाज उठाई;

"ह्यूसन" और "बाग" पर गोली चलाई।


फांसी हई क्रांतिवीर मंगल को;

पर उसने देश को जगा डाला;


तैयार खड़े थे मर मिटने को;

चिंगारी थी बड़ा असर वाला।

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शहीद मंगल पाण्डे की त्याग से;

क्रांति की ज्वाला लहर उठी;


फैली चिंगारी सम्पूर्ण देश में;

अंग्रेजी सत्ता फिर सिहर उठी। 


लखनऊ में हजरत बेगम थीं; 

वीर कुंवर सिंह जगदीशपुर;


इलाहाबाद में लियाकत अली;

बरेली में लड़ रहे खान बहादुर।

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दिल्ली में बहादुर शाह‌ व बख्त खाँ;

कानपुर लड़ रहे नाना संग तात्या।


लक्ष्मीबाई झांसी थी संभाल रही;

अंग्रेजी सत्ता की हवा निकाल रही।


काश ! रानी का वह घोड़ा;

नाला पार कर गया होता;


इतिहास बदल जाता भारत का;

घोड़े में कुछ प्राण बचा होता।

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पुत्र सहित लक्ष्मी को बचा पाता;

जो देशभक्त बड़ी बलिदानी थी;


चेतक की तरह अमर हो जाता;

क्योंकि सवार झाँसी की रानी थी।


दुर्भाग्य समय के पूर्व क्रांति ने; 

जगा गई थी अंग्रेजी शक्ति;

 

पर जगा गए सम्पूर्ण देश में;

वतन के प्रति समर्पित भक्ति।

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मिली सैनिक क्रांति को असफलता;

पर सिद्ध हो गई सत्ता की विफलता।


भारतवासी लड़ने को तैयार खड़े थे;

सत्ता उखाड़ फेंकने को टूट पड़े थे।


क्रमश:

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