भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की सम्पूर्ण कहानी को पढ़ें काव्यात्मक अंदाज में, प्रोफेसर सुबोध झा


आजादी का अमृत महोत्सव विशेष, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की सम्पूर्ण कहानी को पढ़ें काव्यात्मक अंदाज में, प्रोफेसर सुबोध झा की लेखनी से

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की सम्पूर्ण कहानी को पढ़ें काव्यात्मक अंदाज में, प्रोफेसर सुबोध झा

भारत आजादी की 77वीं वर्षगांठ मना रहा है। फिर हम 78वीं वर्षगांठ भी धूमधाम से मनाएंगे। इस पवित्र यज्ञ में मैंने भी अपनी काव्यात्मक आहूति दी है। यह एक ऐतिहासिक महाकाव्य है, जिसमें सैकड़ों पंक्तियाँ हैं। इसे 12 भागों में बाँटा गया है।

जहाँ तक मैं जानता हूँ भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम की सम्पूर्ण कहानी को अबतक काव्यात्मक स्वरूप किसी ने भी नहीं दी है। हाँ, टुकड़ों में वर्णित अवश्य है। मैंने एक प्रयास किया है छोटा सा और मेरी अपनी माँ, जो इस दुनिया में नहीं हैं को समर्पित किया है।

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हाँ कुछ घटनाक्रमों या नामों को महज तुकबन्दी के अभाव के कारण छोड़ दिया गया, जिसका मुझे खेद है। इस ऐतिहासिक महाकाव्य में सन 1608 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का भारत आगमन से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति व भारत विभाजन तक के लगभग 300 वर्षों से अधिक के इतिहास के लगभग सभी घटनाक्रमों को शामिल किया गया है।

साथ ही कुछ ऐसे पहलूओं को भी उजागर किया गया है, जिसे भारतीय इतिहासकारों ने जाने–अनजाने में नहीं लिखा है। चाहे जो भी कारण रहा हो पर यह बात मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि भारत के समृद्ध इतिहास में निश्चित रूप से कुछ न कुछ विरोधाभास है, जिसमें सुधार की आवश्यकता अवश्य है।

इसमें विभिन्न आन्दोलनों को उसके तिथि के आधार पर वर्णित किया गया है, जो विशेषकर प्रतियोगी विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है।


आपका 

प्रो.सुबोध कुमार झा


भाग-1

ईस्ट इंडिया कम्पनी का भारत आगमन

 

इतिहास के पन्नें पलटने से;

बलिदानों से पर्दा उठता है;


फिर उसी खून की स्याही से;

कवि सुबोध कहानी लिखता है।

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आओ सुनाएं अपनी जुबानी;

स्वातंत्र्य संग्राम की एक कहानी।


कितनों ने दी थी बड़ी कुर्बानी;

कितनों ने खोई अपनी जवानी।


सक्षम समृद्ध था भारत अपना;

सारी दुनिया के लिए था सपना।

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विश्वप्रसिद्ध गणतंत्र बतलाता था;

सोने की चिड़िया कहलाता था।

 

राजा महाराजाओं का देश बड़ा;

सबकी क्षमताओं पर देश खड़ा।


एक  सुन्दर सा था देश  मेरा;

जो खुशियों से था हरा भरा।

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फिर आपसी रंजिशों में; 

यहाँ कुछ जयचंद मिले;


उनके स्वार्थ बंदिशों में;

बस मुगल साम्राज्य खिले।


फिर विपदा देश पर आयी बड़ी; 

जो थी अंग्रेजों की कुदृष्टि पड़ी;


बस व्यापार अपना बढ़ाने को;

ईस्ट इंडिया कंपनी आ पहूँची।


अगस्त 1608 में जहाज "हेक्टर";

सूरत बंदरगाह पर था डाला लंगर।

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विलियम हाॅकिंस के ही नेतृत्व में;

अंग्रेज़ी कम्पनी आयी अस्तित्व में।


उद्देश्य था उनका सिर्फ व्यापारिक;

पर बढ़ाने लगा अपना सामरिक;


बस धूर्तजाल में भारतीय फंसकर;

मिटाता रहा यह देश सांस्कृतिक।

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भारत में पूर्व से दुश्मन मौजूद था;

फ्रांस,पुर्तगाल,डचों का वजूद था।


तत्काल मुगल शासक समृद्ध था;

अकबर पुत्र जहाँगीर प्रसिद्ध था।


चालीस लाख मुगल सैनिकों से;

अंग्रेज लड़े उनकी थी औकात नहीं;


पर अपने कुछ धूर्त तेवरों से;

मुगलों को हराने की बिसात चली।


हाॅकिंस बड़ा ही अनपढ़ था;

फिर सर टामस रो साथी बना;


आया दरबार जहाँगीर का;

और वही भारत का घाती बना।

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बादशाह जहाँगीर अय्याश था;

धन दौलत बढ़ाने में विश्वास था;


फँसा वह टामस रो के चक्कर में;

बस हुआ वही जो आभाष था।


अंग्रेजों ने कुटिल प्रस्ताव दिया; 

फिर भारत आकर व्यापार किया।


उसने जो हमको आश दिया;

बस उसी पर तो विश्वास किया। 

 

हम तो भोले भाले भारतवासी थे;

हम तो सीधे सादे संन्यासी थे।

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उसने भाई भाई को लड़ा दिया;

अपने साम्राज्य को खड़ा किया।


धीरे धीरे भारत भर फैलता गया;

अपनों में बस जहर घोलता गया;


देश में  गद्दारों की फौज बनाकर;

समृद्ध भारत को रौंदता  गया।

 

भारत को लगे लूट खसोटने;

अकूत खजानों को लगे समेटने;

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भारत के लोगों से ही मिलकर;

अंग्रेजी साम्राज्य को लगे बढ़ाने।


1757 में पलासी युद्ध जीत कर;

सिराजुद्दौला का था संहार किया;


सेनापति मिरजाफर से मिलकर; 

क्लाइव ने बंगाल पर अधिकार किया।

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1764 में बक्सर युद्ध जीत कर;

भारत में साम्राज्य विस्तार किया;


कलकत्ता को राजधानी बनाकर;

बंगाली संस्कृति पर प्रहार किया।

क्रमशः

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