साहिबगंज के जंगल खतरे में, गायब हो रहे बेशकीमती पेड़
साहिबगंज: कभी जैव विविधता और बहुमूल्य वन सम्पदा के लिए पहचाने जाने वाले साहिबगंज के जंगल अब संकट में हैं। सागवान, केंदा, आंवला, जामुन, कटहल, आम, सिमल, सागवान दर्जनों बेशकीमती इमरती और दिव्य औषधि युक्त पेड़ अब जंगलों में दिखना दुर्लभ हो गया है। इन पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और संरक्षण की कमी के कारण आज स्थिति गंभीर हो गई है।
एक समय साहिबगंज जिले के जंगलों में इन पेड़ों की भरमार थी। केंदा और भूड़रु जैसे फल जंगल में रहने वाले लोगों के पोषण के बड़े श्रोत थे। केंदा की लकड़ी इतनी मजबूत होती है कि इसका इस्तेमाल एके 47, इंसास और रायफल जैसे शस्त्रों को बनाने में होता है।
हारमोनियम सहित अन्य म्यूजिकल उपकरणों में भी इसका उपयोग किया जाता है, इसकी अवैद्य कटाई सबसे ज्यादा होती रही। जामुन और आंवला जैसे फल बाजारों में अच्छी कीमत पर बिकते थे, जिससे स्थानीय लोगों को अतिरिक्त कमाई हो जाती थी।
वहीं, सागवान से बनने वाले फर्नीचर की बाजार में भारी मांग थी। सिमल की रुई का इस्तेमाल तकिए और रजाइयों में होती थी, जबकि ग़महार की लकड़ियों से बनी कंघियों का इस्तेमाल सिख समुदाय द्वारा किया जाता था। पर अब ये पेड़ जंगलों में नज़र नहीं आते ऐसा लगता है मानो ये सभी पेड़ कहीं विलुप्त हो गए हैं।
वहीं, पेड़ों के अंधाधुंध कटाई से वन्य औषधियों पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है। कभी यहां के जंगलों में जंगली लहसुन, भृंगराज, चिरायता, तुलसी, मुलिन, भृंगराज, लाल तिपतिया घास, हल्दी, अदरक, बेलेडोना, नीम, जैसी जड़ी - बूटियों के पौधे सहज रूप से मिल जाती थी, अब ढूंढने से भी नहीं मिलती। इन औषधियों का उपयोग विभिन्न रोगों के उपचार के लिए किया जाता है।
खनन और तस्करी से विलुप्त हो गए बेशकीमती पेड़: जिला वन प्रमंडल पदाधिकारी प्रबल गर्ग बताते हैं कि खनन, अवैद्य तस्करी और संरक्षण के कारण ये बहुमूल्य वृक्ष विलुप्त होने लगे हैं। उन्होंने कहा कि दुर्लभ वृक्ष विलुप्त हो गए वृक्षों की संरक्षण करने की कोशिश की जा रही है। इससे न केवल साहिबगंज के जंगल हरे भरे होंगे, बल्कि ग्रामीणों की अपनी खोई आमदनी और जीवनशैली भी वापस मिल सकेगी।
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