हरतालिका तीज विशेष: आस्था, पर्यावरण और नारी-सम्मान की त्रिवेणी
साहिबगंज : सावन-भादो की फुहारों के बीच हरतालिका तीज का पर्व नारी-शक्ति, प्रेम और प्रकृति से जुड़ाव का अनूठा उत्सव है। इस बार 26 अगस्त को हरतालिका तीज धूमधाम से मनाई जाएगी। महिलाएँ हरे वस्त्र, मेहंदी और श्रृंगार से सजी-धजी न केवल धार्मिक अनुष्ठान करेंगी, बल्कि सामूहिक आनंद और सामाजिक एकता का संदेश भी देंगी।
धार्मिक महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार, माता पार्वती ने कठिन तपस्या कर भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था। इसी कथा के आधार पर विवाहित महिलाएँ अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं, जबकि अविवाहित युवतियाँ आदर्श वर की प्राप्ति हेतु व्रत रखती हैं। स्कंद पुराण और शिव पुराण में भी इस पर्व की महत्ता वर्णित है।
परंपराएँ और श्रृंगार
तीज पर महिलाएँ हरे रंग की साड़ी, लहंगा, चूड़ियाँ और मेहंदी से श्रृंगार करती हैं। हरा रंग उर्वरता और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। तीज का स्वाद घेवर, मालपुआ, पूड़ी, खीर और हलवे से और भी खास हो जाता है। ससुराल से बहू को भेजे जाने वाले ‘सिंजारे’ की परंपरा रिश्तों की मिठास बढ़ाती है।
पर्यावरण और सामाजिक संदेश
तीज केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति और नारी-सम्मान का भी उत्सव है। सावन-भादो की हरियाली और झूला झूलने की परंपरा पर्यावरणीय चेतना और सामूहिकता का प्रतीक है। ग्रामीण क्षेत्रों में पीपल, नीम या आम के पेड़ों पर झूले लगाए जाते हैं, जबकि शहरी इलाकों में पार्कों और सामुदायिक स्थलों पर आयोजन होते हैं।
संस्कृति और अर्थव्यवस्था का संगम
शहरों में तीज मेले और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के रूप में मनाई जाती है। इसमें नृत्य, भजन-कीर्तन, मेहंदी प्रतियोगिताएँ और पारंपरिक परिधानों की प्रदर्शनी शामिल होती है। ये आयोजन न केवल परंपराओं को जीवित रखते हैं, बल्कि स्थानीय हस्तशिल्प और अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा देते हैं।
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