RSS की शाताब्दी वर्ष पर विशेष, प्रोफेसर सुबोध झा की कलम से
विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने शताब्दी वर्ष मना रहा है, जिसके लिए एक सबसे छोटा सा स्वयंसेवक राष्ट्रचेतना की अमर ज्योति प्रज्ज्वलित करने में अपनी गिलहरी की भूमिका का निर्वहन कर रहा है। तभी तो कहते हैं कि संघ अपने शाखा के माध्यम से, व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण सहित अपने देश को परम वैभव की ओर ले जाने में मस्त है। स्वरचित गीत
देशप्रेम
(संघ गीत)
एक सुन्दर सा फूल खिला दो;
जो माँ भारती को ही भाते हैं।
बस उन चरणों की धूल दिला दो;
जो सदा उनकी सेवा में जाते हैं।
मैं भी खड़ा हो जाऊँ उस भीड़ में;
जो सदा उन पर शीश नवाते हैं।
मैं भी गाता जाऊं गीत वही फिर;
जो सदा वे वतन के लिए गाते हैं।
वीर शिवा सा धर्मवीर बना दो;
जो हिन्दूत्व का भाव जगाते हैं।
या महाराणा सा देशप्रेम जगा दो;
जिसे देख रिपू दल भी थर्राते हैं।
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