गणपति बप्पा मोरया: भगवान गणेश को 'बप्पा' और 'मोरया' क्यों कहा जाता है, जानें इसके पीछे की रोचक कथा
भगवान गणेश के जयकारों में अक्सर “गणपति बप्पा मोरया” बोला जाता है, लेकिन इसके पीछे की कथा बेहद रोचक है। इसका संबंध महाराष्ट्र के चिंचवाड़ गांव से है, जहां लगभग 600 वर्ष पूर्व भगवान गणेश के परम भक्त मोरया गोसावी का जन्म हुआ था। माना जाता है कि मोरया गोसावी गणपतिजी के अंश थे। उनका जन्म 1375 ई. में वामन भट्ट और पार्वती के घर हुआ, जो स्वयं भी भगवान गणेश के भक्त थे।
कथा के अनुसार, भगवान गणेश उनकी गहन भक्ति से प्रसन्न होकर उनके घर जन्म लेने का वरदान दे चुके थे। बचपन से ही मोरया गोसावी भगवान गणेश की उपासना में लीन रहते थे। हर साल गणेश चतुर्थी पर वे चिंचवाड़ से करीब 95 किलोमीटर दूर मयूरेश्वर मंदिर तक पैदल दर्शन करने जाते थे। भगवान गणेश की सवारी मोर (मयूर) होने से उन्हें मयूरेश्वर भी कहा जाता है।
लगातार 117 वर्षों तक मोरया गोसावी ने यह यात्रा की। वृद्धावस्था में जब उनके लिए मंदिर तक जाना कठिन हो गया, तब भगवान गणेश स्वयं उनके सपने में आए और कहा कि अब उन्हें मंदिर आने की आवश्यकता नहीं। अगले दिन स्नान के बाद जब मोरया गोसावी कुंड से बाहर आए, तो उनके सामने भगवान गणेश की वही प्रतिमा प्रकट हुई, जो उन्होंने स्वप्न में देखी थी।
मोरया गोसावी ने उस प्रतिमा को चिंचवाड़ में स्थापित किया, जो धीरे-धीरे भक्तों के बीच प्रसिद्ध हो गई। तब से भक्तों और भगवान के बीच का अंतर कम होने लगा और “गणपति बप्पा मोरया” के जयकारे लगने लगे। माना जाता है कि चिंचवाड़ में स्थापित गणेश प्रतिमा मयूरेश्वर भगवान का ही अंश है। आज भी हर साल इस अंश को मिलाने के लिए मयूरेश्वर मंदिर तक डोली निकाली जाती है।
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