करवा चौथ की शुरुआत कैसे हुई? जानिए पौराणिक कथा और महत्व
करवा चौथ का पावन पर्व 10 अक्तूबर को पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाएगा। यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है, जिसमें विवाहित महिलाएं सूर्योदय से चंद्रोदय तक निर्जला उपवास रखकर अपने पति की दीर्घायु और मंगलमय जीवन की कामना करती हैं। करवा चौथ केवल पति-पत्नी के प्रेम और विश्वास का प्रतीक ही नहीं, बल्कि इसमें गहरा आध्यात्मिक और दार्शनिक संदेश भी निहित है।
🌕 करवा चौथ की शुरुआत कैसे हुई?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार देवताओं और दानवों के बीच भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें देवताओं की हार होने लगी। भयभीत देवता ब्रह्मदेव के पास गए और अपनी रक्षा की प्रार्थना की।
ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवपत्नी अपने पतियों के लिए व्रत रखें और सच्चे मन से उनकी विजय की कामना करें। उन्होंने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर देवताओं की निश्चित रूप से जीत होगी।
🌸 व्रत के प्रभाव से हुई देवताओं की विजय
ब्रह्मदेव के कहे अनुसार, कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि को सभी देवपत्नी ने अपने पतियों की रक्षा के लिए व्रत रखा और उनके विजय की प्रार्थना की। उनकी श्रद्धा और तप से प्रसन्न होकर देवताओं ने युद्ध में विजय प्राप्त की।
युद्ध में जीत की खबर सुनकर सभी देवपत्नी ने चांद निकलने पर व्रत खोला, और तभी से यह व्रत करवा चौथ के नाम से जाना जाने लगा।
🌼 करवा चौथ का संदेश
यह व्रत केवल पति की लंबी उम्र की प्रार्थना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह निष्ठा, समर्पण और विश्वास का प्रतीक भी है। यह परंपरा आज भी भारत के कोने-कोने में उसी श्रद्धा के साथ निभाई जाती है, जैसे प्राचीन काल में देवपत्नी ने निभाई थी।
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