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आरण्यक काव्य मंच साहिबगंज द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर काव्य संध्या का हुआ आयोजन


साहिबगंज : संध्या 7:30 बजे आरण्यक काव्य मंच, परशु शिवांगन, झरना कालोनी, साहिबगंज के तत्वावधान में विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर राजेंद्र प्रसाद ठाकुर की अध्यक्षता में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में हिंदी साहित्य के योगदान पर परिचर्चा एवं कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया।

आरण्यक काव्य मंच साहिबगंज द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर काव्य संध्या का हुआ आयोजन

मुख्य अतिथि पूर्व भूवैज्ञानिक, रक्षा मंत्रालय भारत सरकार सह उपनिदेशक भूतत्व खान एवं भूतल विभाग बिहार सरकार के डॉक्टर मेहता नागेन्द्र सिंह सहित अन्य पर्यावरणविद द्वारा चर्चा की गई।

उन्होंने नवीन साहित्यकारों से पर्यावरण साहित्य लिखने का आग्रह किया, ताकि पर्यावरण संरक्षण के विषय में जनजागृति लाई जा सके। साथ ही साथ उन्होंने पर्यावरण पर स्वरचित "मनमौजी निकला मौसम हम क्या करें" ग़ज़ल की शानदार प्रस्तुति भी दी।

इसके पश्चात द्वितीय सत्र में दीप प्रज्वलन के बाद कार्यक्रम की शुरुआत विजय कुमार भारती द्वारा सरस्वती वंदना के साथ हुई।जहां अन्य कवियों, कवयित्रियों एवं रचनाकारों द्वारा शानदार प्रस्तुति दी गई। जिससे कार्यक्रम में चार चाँद लग गए।


रेणु बाला कुमारी "सखी" ने पर्यावरण और वृक्षारोपण का संदेश देते हुए " सब मिल करते हैं वृक्षारोपण" की जबरदस्त प्रस्तुति दी। वहीं अंजनी शरण द्वारा "कुछ पेड़ कटे, थोड़ी जगह बनी, मेरा घर भी बना, पेड़ों के बीच" की मार्मिक प्रस्तुति दी गई।

जबकि अंजनी कुमार सुमन ने पर्यावरण पर रचित बाल कविता" आओ मिलकर हम सबको यह पर्यावरण बचाना है" की सारगर्भित प्रस्तुति दी। आनंद कुमार आनंद ने हरितीमा प्रकृति पर आधारित अपनी कविता "फूलों से, पत्तों से मन की बात न पूछो" हृदय स्पर्शी प्रस्तुति दी।

इंद्र ज्योति राय ने भौम जल संरक्षण पर आधारित कविता "पानी हूं मैं, प्यासे की प्यास हूं मैं " पर मार्मिक प्रस्तुति दी और जल संरक्षण संवर्धन का संदेश दिया‌। कार्यक्रम में सपना चंद्रा ने वर्तमान परिदृश्य और स्वच्छ वातावरण पर मनमोहक प्रस्तुति दी।


जबकि शैलेंद्र राम ने  "समन है तु मनसे तपन है" का बेहतरीन काव्य पाठ किया। वहीं अभय कुमार सिन्हा ने जंगल संरक्षण पर बेहतरीन संदेश देते हुए" जंगल खुद रोता है अपनी नियति पर तथा समुद्र की व्यथा" का बेहतरीन काव्य पाठ किया।

प्रमोद निराला ने गेय शैली में " सांस बिना अनमोल ये जिंदगी पल में बेकार हो, गली - गली शहर - शहर मचा है हाहाकार हो" की मधुर प्रस्तुति देकर दर्शकों की वाहवाही लूटी। सच्चिदानंद किरण ने "पर्यावरण की रखवाली खुशियां ही लाती हरी - भरी ये हरियाली" का बेहतरीन प्रदर्शन किया।

उषा भारती ने " मानव तेरा आदत पुराना " की मनमोहक प्रस्तुति देते हुए मानव की भौतिकतावादी दृष्टिकोण को उजागर किया। वहीं अमन कुमार होली ने "हरित केश मेरे उजड़ रहें हैं, मानव तुम क्यों सो रहे हो ?"की बेहद संवेदनशील प्रस्तुति दी।


इस रचना को सुन सभी भावविभोर हो गये। जबकि विजय कुमार भारती  ने "मैं प्रकृति हूं तुम्हारे चारों तरफ हर वक्त विद्यमान रहती हूं"  की प्रकृति की व्यथा पर  बेहद मार्मिक व सारगर्भित काव्य पाठ किया।

अवधेश कुमार अवधेश के द्वारा " लगे सूखने झील सरोवर खोजे मिले न नीर , आखिर हम सब कब समझेंगे धरती मां की पीर" की मार्मिक प्रस्तुति दी गई। विनय कुमार झा "विमल" द्वारा प्रकृति पर आधारित "मैं प्रकृति हूं, यह मेरा आवरण है, जिसे कहते पर्यावरण हैं" की शानदार प्रस्तुति दिया गया।


भगवती रंजन पांडेय ने सफल मंच संचालन करते हुए इस कार्यक्रम में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। साथ ही दर्जनों की संख्या में गुगल मीट के आभासी पटल पर श्रोताओं ने अपनी सहभागिता दर्ज कराई। जिनमें, अभ्युदय के अध्यक्ष सुबोध कुमार झा, विद्याधर साह, राज करण सिंह, बरेली, अंकित पांडे आदि मौजूद थे।

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