आखिर क्यों भगवान गणेश को धारण करना पड़ा स्त्री रूप? जानें पुराणों में वर्णित ‘विनायकी’ की कथा


आखिर क्यों भगवान गणेश को धारण करना पड़ा स्त्री रूप? जानें पुराणों में वर्णित ‘विनायकी’ की कथा

पौराणिक ग्रंथों में अनेक देवताओं के स्त्री स्वरूप का उल्लेख मिलता है। भगवान विष्णु से लेकर अर्जुन तक कई देवताओं ने किसी विशेष कारण से स्त्री रूप धारण किया था। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि प्रथम पूज्य भगवान गणेश को भी एक बार स्त्री रूप धारण करना पड़ा था। उनके इस अद्वितीय रूप को ‘विनायकी’ कहा गया है।

धर्मोत्तर पुराण और वन दुर्गा उपनिषद में भगवान गणेश के स्त्री स्वरूप का उल्लेख मिलता है। वन दुर्गा उपनिषद में उन्हें ‘गणेश्वरी’ कहा गया है।

विनायकी का प्रकट होना

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार दैत्य अंधक ने माता पार्वती को जबरन अपनी अर्धांगिनी बनाने का प्रयास किया। उनकी रक्षा के लिए भगवान शिव ने त्रिशूल से अंधक का वध करने की कोशिश की। लेकिन उसकी हर रक्त-बूंद से एक नई राक्षसी का जन्म होता गया। इस पर माता पार्वती ने सभी दैवी शक्तियों को उनके स्त्री स्वरूप में आमंत्रित किया, ताकि वे उस रक्त को अपने भीतर समा लें।

इसके बावजूद समस्या बनी रही, तब भगवान गणेश स्वयं स्त्री स्वरूप ‘विनायकी’ में प्रकट हुए और अंधक के गिरते रक्त को पी लिया। इसी कारण से अंधक का अंत संभव हो सका।

विनायकी का स्वरूप

कहा जाता है कि विनायकी का शरीर माता पार्वती जैसा था, लेकिन उनका सिर गणेश की तरह गजमुख वाला ही रहा। यह रूप शक्ति और बुद्धि के अद्भुत संगम का प्रतीक माना गया।

धार्मिक महत्व

गणेश का यह स्वरूप हमें यह संदेश देता है कि हर दैवीय शक्ति में पुरुष और स्त्री तत्व दोनों मौजूद होते हैं। पुरुष तत्व मानसिक सामर्थ्य का प्रतीक है जबकि स्त्री तत्व शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है।


रिपोर्ट: संजय कुमार धीरज | साहिबगंज न्यूज डेस्क

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