नवरात्रि में फलाहारी का सही तरीका: प्रेमानंद महाराज ने बताया व्रत का असली अर्थ
22 सितंबर से शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ हो चुका है। पूरे देशभर में भक्त नौ दिनों तक माता रानी की भक्ति में लीन रहते हैं और व्रत-उपवास रखते हैं। लेकिन क्या आज के समय में व्रत रखना वही मायने रखता है, जो पहले हुआ करता था? इसी पर प्रकाश डालते हुए प्रेमानंद महाराज ने एक सत्संग में व्रत का सही अर्थ और फलाहार की वास्तविक परिभाषा बताई।
व्रत का अर्थ है संयम, सिर्फ खान-पान पर रोक नहीं
महाराज ने कहा कि व्रत का असली अर्थ है "संयम"। आजकल लोग उपवास के दौरान भी तरह-तरह के पकवान जैसे पूड़ी, पकौड़ी, खीर, सूखे मेवे और महंगे अनाज खा लेते हैं। इससे व्रत का भाव ही समाप्त हो जाता है।
फलाहार का मतलब – हल्का और सात्विक भोजन
उन्होंने समझाया कि फलाहार का अर्थ है हल्का, सात्विक और भगवान को अर्पित किया गया प्रसाद। इसमें सिर्फ फल या सरल भोजन होना चाहिए। लेकिन आधुनिक समय में लोग व्रत को स्वाद का माध्यम बना देते हैं, जबकि इसका उद्देश्य आत्मसंयम है।
व्रत का सही तरीका – मन और कर्म की पवित्रता
प्रेमानंद महाराज ने कहा कि व्रत रखना केवल खाने-पीने पर नियंत्रण नहीं है, बल्कि मन और कर्म दोनों में सात्विक बने रहना है। नकारात्मकता से दूर रहना, भजन-कीर्तन करना और अच्छे विचार अपनाना ही उपवास का असली रूप है।
नवरात्रि – आत्मशुद्धि और भक्ति का पर्व
उन्होंने कहा कि नवरात्रि केवल परंपरा निभाने का नाम नहीं है। यह आत्मसंयम, आत्मशुद्धि और माता रानी की कृपा प्राप्त करने का पर्व है। जब हम भीतर से शुद्ध होंगे तभी व्रत का वास्तविक फल मिलेगा।
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