सहारा से अदानी तक: भारत की आर्थिक व्यवस्था की अग्नि परीक्षा
भारत की आर्थिक व्यवस्था इस समय एक बड़े बदलाव की दहलीज पर खड़ी है। कभी विशाल साम्राज्य की तरह फैले सहारा समूह की संपत्तियां अब न्यायिक निगरानी में हैं और इनका अधिग्रहण अदानी समूह द्वारा होने की संभावना जताई जा रही है। इस डील को अंतिम रूप देने में सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी अहम भूमिका निभाएगी।
लाखों निवेशक वर्षों से अपनी जमा पूंजी की वापसी का इंतजार कर रहे हैं। सहारा–सेबी विवाद ने उनके घरों की बचत, रिटायरमेंट की योजनाओं और भविष्य की उम्मीदों को लंबे समय तक कानूनी जटिलताओं में उलझा दिया। यदि इस सौदे के माध्यम से निवेशकों को राहत मिलती है, तो यह न्यायपालिका के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी।
कर्मचारियों की स्थिति
सहारा मीडिया और अन्य इकाइयों के कर्मचारी महीनों से वेतन विहीन हैं। कुछ ने आंदोलन किया, कुछ ने नौकरी छोड़ दी और बाकी आजीविका के संकट में हैं। किसी भी डील का असली परीक्षण यह होगा कि क्या ये कर्मचारी अपनी न्यूनतम अधिकारिक सुरक्षा पा सकेंगे।
अदानी समूह का रुख
अदानी समूह तेज़ी से विविध क्षेत्रों में विस्तार कर रहा है। सहारा की 88 संपत्तियाँ, रियल एस्टेट से लेकर हॉस्पिटैलिटी तक, इस विस्तार की कड़ी बनेंगी। सवाल यह है कि क्या यह अधिग्रहण केवल एक और कॉरपोरेट समेकन होगा या फिर सामाजिक उत्तरदायित्व की मिसाल भी बनेगा।
सुप्रीम कोर्ट को यह सुनिश्चित करना होगा कि मूल्यांकन निष्पक्ष हो और प्राथमिकता निवेशकों और कर्मचारियों को दी जाए। यदि प्रक्रिया केवल शक्तिशाली समूहों के हित में झुकी दिखी, तो यह भारत की न्यायिक और नियामक साख पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर सकती है।
इस सौदे की निगरानी और निष्पादन भारत की आर्थिक और न्यायिक स्थिरता के लिए अग्नि परीक्षा साबित होगी।
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