अपनों ने ठुकराया-वृद्धाश्रम ने अपनाया, ठुकराए गए 22 लोगों का सहारा बना "स्नेह स्पर्श"
साहिबगंज : अपने परिवार द्वारा छोड़े गए बुजुर्गों के लिए वृद्धाश्रम एक सुरक्षित और सहायक आशियाना है, जहाँ उन्हें अपनेपन का एहसास होता है और उनकी देखभाल की जाती है। वृद्धाश्रम बुजुर्गों को एक सुरक्षित और आरामदायक रहने का वातावरण भी प्रदान करते हैं, जो शारीरिक, मानसिक या सुरक्षा संबंधी समस्याओं से ग्रस्त हैं।
यहाँ बुजुर्गों को उनकी आवश्यकतानुसार व्यक्तिगत देखभाल और सहायता मिलती है। शहरीकरण और आधुनिकता की दौड़ में परिवार अपने रिश्तों की गर्माहट भूल जाते हैं और अपनी निजता व स्थान की चाहत में वृद्ध माता-पिता को वृद्धाश्रम में भेज देते हैं। कभी-कभी परिवार की आर्थिक स्थिति या सामाजिक दबाव भी इसका कारण बन जाता है।
यह उन बुजुर्गों के लिए एक नया परिवार बन जाता है जो अपने ही परिवार द्वारा ठुकरा दिए जाते हैं। कुछ ऐसी ही अनकही कहानियां हैं साहिबगंज शहर के पहाड़ किनारे स्थापित "स्नेह स्पर्श" वृद्धाश्रम में रह रहे वृद्धजनों की। किसी को घर वालों ने निकाल दिया है तो किसी का अब इस दुनिया में कोई नहीं है।
जब पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने ठुकरा दिया, जब शरीर ने साथ छोड़ दिया और बीमारियों ने जकड़ लिया, तब स्नेह स्पर्श वृद्धाश्रम उनके बुढ़ापे का सहारा बन गया। यहां हर मुस्कुराते चेहरे के पीछे एक दर्दनाक कहानी छिपी है। अपनों के ठुकराए वृद्धों ने अब वृद्धाश्रम को ही अपना घर बना लिया है। सब साथ मिलकर रहते हैं।
वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्ग आपस में सुख-दुख साझा करते हैं और एक दूसरे का सहारा बनते हैं, जिससे उनका अकेलापन दूर होता है। यहां मनोरंजन के लिए टीवी है, जहां सब बैठकर टाइम पास करते हैं। शाम में सभी मिलकर भजन - कीर्तन करते हैं।
सीने में परिजनों से बिछड़ने के टीस दबाए सब अपनी आखिरी यात्रा का इंतजार कर रहे हैं। कुछ महिलाएं रेलवे ट्रैक पर मिलीं, तो कुछ को पुलिस वाले छोड़कर चले गए। वृद्धाश्रम की अधीक्षक वंदना कुमारी ने बताया कि वर्तमान में 24 बेड वाले वृद्धाश्रम में 13 महिलाएं और 9 पुरुष समेत 22 वृद्धजन यहां रह रहे हैं। उनका रेगुलर जांच कराया जाता है। यहां नाश्ता से लेकर भोजन तक, सोने से लेकर उनके स्वास्थ्य तक का विशेष ध्यान रखा जाता है।
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