पति - पत्नि के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है करवाचौथ : महत्व और पूजन विधि


कार्तिक मास की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत मनाया जाता है। इस व्रत का महिलाओं को सालभर इंतजार रहता है। करवाचौथ का पर्व पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है।

Karva Chauth is a symbol of strong husband-wife relationship, love and trust: Significance and worship method

यह व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक माना गया है। करवाचौथ पर पूरे दिन निर्जला रहकर शाम को चांद के निकलने के बाद उसे अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है।


इस चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी भी कहते हैं। इस दिन भगवान गणेश की विशेष रूप से पूजा की जाती है। करवा चौथ का व्रत का महत्व अपने पति के स्वस्थ मंगल जीवन की कामना और लंबी उम्र के लिए महिलाएं करवा चौथ का व्रत रखती हैं।

वहीं कुमारी कन्याएं भी अच्छे वर की प्राप्ति के लिए ये व्रत रखती हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवों और दानवों में भीषण युद्ध हुआ, युध्द में देवताओं की जीत मुश्किल नजर आ रही थी। तभी देवताओं की पत्नियां भगवान ब्रह्मा के पास गईं।

पति - पत्नि के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है करवाचौथ : महत्व और पूजन विधि

तब ब्रह्मा जी ने सभी देवियों को कार्तिक मास की चतुर्थी को निर्जला व्रत रखने के लिए कहा। देवों की पत्नियों ने इस व्रत को विधि पूर्वक रखा था, जिस कारण युद्ध में देवताओं को विजय प्राप्त हुई। तभी से इस व्रत को रखने की परंपरा आरंभ हुई।

करवा चौथ व्रत की पूजा विधि

करवा चौथ व्रत की सभी विधियों को बड़े श्रद्धा-भाव से करना चाहिए। इस व्रत में भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्र देवता की पूजा-अर्चना करने का विधान है।

सबसे पहले सभी भगवान का आह्वान करें। उसके बाद सभी की मूर्तियों का षोडशोपचार विधि से पूजन करें। फिर किसी धातु या मिट्टी से बने बर्तन में जल रखे और करवे का पूजन करें।


इस दिन माता पार्वती को 16 श्रृंगार विशेष रूप से चढ़ाया जाता है। शिव परिवार के पूजन के बाद कथा सुननी चाहिए, उसके बाद चांद को अर्ध्य देकर छलनी से पति का चेहरा देखने के बाद व्रत खोलना चाहिए।

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